वीणावादिनि शारदे,
माता दो आशीष।
दो हज़ार उन्नीस गत,
आया है शुभ बीस।।1।।
शब्द - शब्द में ज्ञान दो ,
वीणा की झनकार।
जनहितकारी काव्य की,
महिमा अपरम्पार।।2।।
विद्या वाणी दान कर ,
माँ करती उपकार।
जन-जन का कल्याण हो,
हो सबका उद्धार।।3
जन -जन में सद्भावना,
का हो नित उत्कर्ष।
सुख- समृद्धि बढ़ती रहे,
हृदय भरे शुभ हर्ष।।4।।
स-हित भाव साहित्य का,
फैले मेरे देश।
जन गण मन में शांति हो,
हिंसा रहे न क्लेश ।।5।।
स्वस्थ सुखी सानन्द हो,
मेरा भारत देश।
भाव बनें सद्भाव के,
विघटन रहे न शेष।।6।।
बिना तुम्हारे मूक है ,
जड़ - चेतन संसार।
वाणी दी माँ भारती,
वीणा का स्वर सार।।7।।
खग-दल में कलरव भरा,
सरिता - कल संगीत।
मेघों में गर्जन गहन,
मानव में शुभ गीत।।8।।
पत्ती - पत्ती नाचती,
हँस - मुस्काते फूल।
लता - कुंज के नृत्य में,
इठलाती है धूल।।9।।
सरसों नाचे खेत में,
वन में पौधे - बेल।
कोयल चातक बाग में ,
खेल रहे हैं खेल।।10।।
स्वर भरती माँ सरस्वती,
कवि को देती ज्ञान।
'शुभम'काव्य हित से भरो
करता माँ तव ध्यान।।11।
💐शुभमस्तु ! 💐
✍रचयिता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
01.01.2020 ,8.15 अपराह्न्
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