गुरुवार, 2 जनवरी 2020

विनती वीणावादिनि से [ दोहा ]


वीणावादिनि      शारदे,
माता     दो      आशीष।
दो    हज़ार  उन्नीस  गत,
आया है  शुभ बीस।।1।।

शब्द - शब्द   में ज्ञान दो ,
वीणा    की    झनकार।
जनहितकारी काव्य की,
महिमा  अपरम्पार।।2।।

विद्या   वाणी   दान कर ,
माँ     करती    उपकार।
जन-जन का कल्याण हो,
हो     सबका   उद्धार।।3

जन -जन  में सद्भावना,
का   हो   नित   उत्कर्ष।
सुख- समृद्धि बढ़ती रहे,
हृदय  भरे शुभ हर्ष।।4।।

स-हित भाव साहित्य का,
फैले          मेरे        देश।
जन  गण मन में शांति हो,
हिंसा   रहे  न क्लेश ।।5।।

स्वस्थ  सुखी सानन्द हो,
मेरा       भारत       देश।
भाव   बनें    सद्भाव  के,
विघटन  रहे न शेष।।6।।

बिना   तुम्हारे   मूक   है ,
जड़ -   चेतन     संसार।
वाणी  दी   माँ    भारती,
वीणा का स्वर सार।।7।।

खग-दल में कलरव भरा,
सरिता  - कल    संगीत।
मेघों   में    गर्जन   गहन,
मानव में शुभ गीत।।8।।

पत्ती -  पत्ती      नाचती,
हँस -   मुस्काते    फूल।
लता -  कुंज  के नृत्य में,
इठलाती  है धूल।।9।।

सरसों     नाचे    खेत में,
वन     में    पौधे -  बेल।
कोयल  चातक बाग में ,
खेल रहे  हैं खेल।।10।।

स्वर भरती माँ सरस्वती,
कवि   को   देती   ज्ञान।
'शुभम'काव्य हित से भरो
करता माँ तव ध्यान।।11।

💐शुभमस्तु ! 💐
✍रचयिता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

01.01.2020  ,8.15  अपराह्न्

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