कोरे कागज - सी ज़िंदगी मेरी,
जिस पे लिक्खी है शायरी मेरी।
अपना माज़ी न भुला पाया है,
न भुला पाया हूँ तुझे कमी मेरी।
ज़ीस्त के पन्ने तो सभी बिखरे हैं,
ज़ीस्त जैसी भी है भली मेरी।
यकीं में भी गुंजाइश है शक की,
तेरी खुशियों में है खुशी मेरी।
अपने ग़म का सबब बता भी दो,
तेरे अश्कों से बुझी है तश्नगी मेरी।
तेरी राहों से खार मैं चुन लूँ,
इतनी खुदगर्ज़ है आशिक़ी मेरी।
चाँद - तारे तो 'शुभम' नहीं देगा,
तुझपे कुर्बान शायरी मेरी।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
❤ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
03.01.2020 ●8.00 अपराह्न।
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