बुधवार, 22 जनवरी 2020

कोहरे का दरबार [ दोहा ]



अभी    रजाई    छोड़  कर ,
क्यों        जाते     सरकार।
बाहर  कुहरे     का    लगा ,
सघन   शान्त  दरबार।।1।।

शी -   शी   करता  शीत से,
थर  -  थर     काँपे      देह।
गरम    रजाई    भा   रही ,
ओलों     के  सँग  मेह।।2।।

बत्ती   टिम - टिम जल रही,
धीमी          वाहन     चाल।
रेंग -   रेंग   कर   बढ़  रहे ,
चालक        हैं    बेहाल।।3।।

चश्मे    में     दिखता   नहीं,
धुँधले        दोनों        ताल।
छा      जाता     है   कोहरा ,
धीमी    पैदल      चाल।।4।।

खेत ,   सड़क ,   मैदान  में ,
फैली         चादर      श्वेत।
पेड़       नहाए -  से    खड़े ,
मौन       झुके    समवेत।।5।।

गौरैया      सहमी     पड़ी ,
द्रुम -  शाखा     के   नीड़।
पंख     समेटे      काँपती,
 नहीं छतों पर भीड़ ।।6।।

दरबे     तज   बाहर   गए,
मुर्गी    -     मुर्गा      रोज।
कुक्कड़  - कूँ   कर  घूमते,
करते   भोजन  खोज।।7।।

नील -   सिलेटी    रंग   के ,
भोले        झुंड        कपोत।
छत     मुँडेर   की   बैठकर ,
देखें    सूरज  -  जोत।।8।।

काँव  -  काँव    कौवे  करें,
पीड़कुलिया       है    मौन।
सुबह भजन  करती  नहीं ,
हमें       बचाए   कौन??9।।

भैंस     रंभाती    रात  में ,
बजे     अभी     हैं     चार।
काकी     कहती   कान में ,
करो  अभी  उपचार।।10।।

खूँटे     से      गैया    बँधी ,
आँसू       बहते       नैन ।
शिशिर शीत तन  काँपता,
कहे  न मुख  से बैन।।11।।

माघ  मास    शीतल  लगे ,
छूने     में      भी      नीर।
जो     नहान   इसमें    करे,
कहलाए     वह  वीर।।12।।

दही     बिलोती   माँ   कहे ,
'जागो       मेरे         लाल।
मुँह धोकर गुड़ - छाछ  पी,
उधर  रजाई  डाल।।'13।।

'विद्यालय     है    बन्द  माँ,
नहीं        नहाना       आज।
ऐसे      ही  गुड़  -  छाछ   दो,
क्या   बिगड़ेगा काज'??14।।

साधु - संत    सब   कर रहे ,
संगम         माघ -    प्रवास।
शीतल      कुहरा    भूलकर ,
प्रभु- चरणों की   आस।।15।।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

20.01.2020◆ 2.45अपराह्न

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...