अभी रजाई छोड़ कर ,
क्यों जाते सरकार।
बाहर कुहरे का लगा ,
सघन शान्त दरबार।।1।।
शी - शी करता शीत से,
थर - थर काँपे देह।
गरम रजाई भा रही ,
ओलों के सँग मेह।।2।।
बत्ती टिम - टिम जल रही,
धीमी वाहन चाल।
रेंग - रेंग कर बढ़ रहे ,
चालक हैं बेहाल।।3।।
चश्मे में दिखता नहीं,
धुँधले दोनों ताल।
छा जाता है कोहरा ,
धीमी पैदल चाल।।4।।
खेत , सड़क , मैदान में ,
फैली चादर श्वेत।
पेड़ नहाए - से खड़े ,
मौन झुके समवेत।।5।।
गौरैया सहमी पड़ी ,
द्रुम - शाखा के नीड़।
पंख समेटे काँपती,
नहीं छतों पर भीड़ ।।6।।
दरबे तज बाहर गए,
मुर्गी - मुर्गा रोज।
कुक्कड़ - कूँ कर घूमते,
करते भोजन खोज।।7।।
नील - सिलेटी रंग के ,
भोले झुंड कपोत।
छत मुँडेर की बैठकर ,
देखें सूरज - जोत।।8।।
काँव - काँव कौवे करें,
पीड़कुलिया है मौन।
सुबह भजन करती नहीं ,
हमें बचाए कौन??9।।
भैंस रंभाती रात में ,
बजे अभी हैं चार।
काकी कहती कान में ,
करो अभी उपचार।।10।।
खूँटे से गैया बँधी ,
आँसू बहते नैन ।
शिशिर शीत तन काँपता,
कहे न मुख से बैन।।11।।
माघ मास शीतल लगे ,
छूने में भी नीर।
जो नहान इसमें करे,
कहलाए वह वीर।।12।।
दही बिलोती माँ कहे ,
'जागो मेरे लाल।
मुँह धोकर गुड़ - छाछ पी,
उधर रजाई डाल।।'13।।
'विद्यालय है बन्द माँ,
नहीं नहाना आज।
ऐसे ही गुड़ - छाछ दो,
क्या बिगड़ेगा काज'??14।।
साधु - संत सब कर रहे ,
संगम माघ - प्रवास।
शीतल कुहरा भूलकर ,
प्रभु- चरणों की आस।।15।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
20.01.2020◆ 2.45अपराह्न।
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