पाला जिनको नेह से,
बने सपोले साँप।
जहर उगलने वे लगे,
देश रहा है काँप।।
देश रहा है काँप,
पाक को बाप मानते।
मज़हब की दीवार ,
उठा वे जंग ठानते।।
खोलो अपनी आँख,
नाग ज़हरीला काला।
डंसते हैं वे नाग ,
नेह से जिनको पाला ।।1।।
नेता सोए देश के,
सोए धर्माधीश।
मठ में मट्ठा पी रहे,
मठ के स्वामी ईश।।
मठ के स्वामी ईश,
आँख मूँदे बैठे हैं।
ऊँच - नीच का पाठ,
पढ़ा मन में ऐंठे हैं।।
'शुभम' वही है नेक,
वोट जो उनको देता।
नरक बन गया देश,
आग में झोंकें नेता।।2।।
लोभी कुर्सी के खड़े,
दो झोली भर वोट।
बिजली - पानी मुफ़्त है ,
बाँटेंगे वे नोट।।
बाँटेंगे वे नोट ,
शहद - सा मीठा बोलें।
जाय भाड़ में देश ,
सदा विष में रस घोलें।।
'शुभम' देश को मान,
टमाटर, आलू , गोभी।
कटवाते इंसान,
देश के नेता लोभी ।।3।।
हाला सब में एक ही,
खोलो बोतल चार।
लेबल सबके अलग हैं ,
मतदाता लाचार।।
मतदाता लाचार,
भुलाया है बातों में।
काज सरे कुछ और,
फँसा घातक घातों में।।
'शुभम' भेद के भाव,
जगाता भेदक काला।
बिना पिये ही नाच,
रही है बोतल हाला।।4।।
खाते हैं इस देश का,
गाते उनके गीत।
फरामोश अहसान के ,
कभी न होंगे मीत।।
कभी न होंगे मीत,
यहीं जीते - मरते हैं।
जासूसी में लीन ,
कर्म उलटे करते हैं।।
'शुभम ' सभी शुभ - लाभ,
भारती भू पर पाते।
मानव की धर देह ,
पाक की कसमें खाते।।5।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
21.01.2020●3.15 अपराह्न।
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