गुरुवार, 30 जनवरी 2020

ग़ज़ल


  
फिर  छब्बीस   जनवरी  आई है।
 गणतंत्र - दिवस   की  बधाई है।।

एक    ही  अम्बर    एक  ही धरती,
ये     सब   ईश्वर    की   खुदाई है।

चाँद  और    सूरज    उससे रौशन,
जिसने      यह    धरा     बनाई है।

भेद - भाव    की    खड़ी  दीवारें ,
रहबरों      ने    स्वयं    उठाई है।

उसका   गरेबाँ   झाँक   रहा क्यों,
इसमें   तेरी   भी     रुसबाई    है।

खंडन      आसां      है    रस्सी  का,
जोड़ा     तो    गाँठ   भी   आई  है।

सात      स्वरों  की   सरगम  भारत,
इंद्रधनुषी     छटा   उभर  आई है।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

25.1.2020 ★11.50 पूर्वाह्न।

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