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✍️ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
तेग ने हुंकार भरी, शत्रु - सेन भय भरी,
देह कँपी थरथरी ,देश की ये शान है।
रोता है नापाक पाक,उड़ती जो तेरी खाक,
काट दी है तेरी नाक,भारत में जान है।।
इतराना भूल जाए, माँग -माँग भीख खाए,
बचने न नीच पाए, हुआ नहीं भान है?
पहल हमने न की, छोड़ेंगे नहीं जीते जी,
जो दृष्टि फिर वक्र की,भारत महान है।।
-2-
सम्मान आन शान से,साहस पहचान से,
जवान से किसान से, विश्व हमें जानता।
विज्ञान ज्ञान उच्च है,रंधीरता प्रत्यक्ष है,
समीप तेरे मृत्यु है, मूढ़ रार ठानता।।
इतिहास ने सिखाया,पंथ जीत का दिखाया,
श्रम -अन्न कमा खाया,डींग भी न तानता।
फहराएगा तिरंगा, लहराएँ गीत - गंगा,
कोई हो न भूखा नंगा, देश की महानता।।
-3-
टेढ़ी कुदृष्टि तू करे,अकाल मौत ही मरे,
हरे! हरे!! हरे !हरे!!,पाक मूढ़ मान जा।
छद्म तव कुचाल से,दाढ़ी बढ़ी विशाल से,
पतित पात डाल से, भिज्ञ हम जान जा।।
पीछे हटा!पीछे हटा!!,भू धूल से मत सटा,
कुछ भी नहीं तेरा बँटा,हिंद पहचान जा।
प्रभु भक्त है 'शुभम',पीछे नहीं है कदम,
क्रूर पाक नीच थम,नापाक अज्ञान जा।।
-4-
गीदड़ों से क्या लड़े, अधीर पाँव में पड़े,
विष कपट के घड़े,समान वीर चाहिए।
गह लिए हाथ बम,हस्त में न लेश दम,
जानें नहीं हमें कम,संगीन धीर चाहिए।।
गूँजा वंदे मातरम , नेत्र नहीं भीत नम,
ये तिरंगा परचम, शमशेर चाहिए।
पवित्र राष्ट्रगान है,ये आन बान शान है,
भारत ये महान है, नीर - क्षीर चाहिए।।
🪴 शुभमस्तु !
३१.०१.२०२२◆४.४५
पतनम मार्तण्डस्य।
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