77/2023
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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
करता है बक आचरण,चल मराल की चाल।
कौन नहीं है जानता, व्यर्थ ठोंकता ताल।।
व्यर्थ ठोंकता ताल, सभी उपहास बनाते।
करता कीटाहार , देख कर हंस घिनाते।।
'शुभं' नहीं आचार,उचित करता वह भरता।
मिले न मुक्ताहार, प्रदर्शन झूठा करता।।
-2-
जैसा तन का रूप हो,जैसा योनि प्रकार।
शोभन है वह आचरण,यही सत्य शुचि सार।
यही सत्य शुचि सार, काग क्यों तू इतराए!
चले हंस की चाल,कहाँ से सित रँग लाए।।
'शुभम्'मनुज की देह,आचरण है क्या वैसा!
ढोरों - से तव काम,नहीं लगता नर जैसा।।
-3-
बोली बोल सुहावने,कुहुकिनि वृक्ष रसाल।
भाषा का मधु आचरण,श्रवणों में रस डाल।
श्रवणों में रस डाल, सँदेशा देता प्यारा।
आया है ऋतुराज, एक ही अपना नारा।।
'शुभं'सदा शुभ बोल,नहीं कर वृथा ठिठोली।
आप कहें नर नारि, आपकी हो मधु बोली।।
-4-
होली आई साँवरे, आजा खेलें रंग।
बुरा नहीं हो आचरण,हिल- मिल झूमें संग।।
हिल - मिल झूमें संग,हमें मर्यादा प्यारी।
छूना मत ये अंग, कुलीना ब्रज की नारी।।
'शुभम्' नहीं उपहास,न भावे हमें ठिठोली।
बोले हँसकर श्याम,राधिके क्या फिर होली?
-5-
पहने उजले आवरण, उर में विष - भंडार।
कृत्रिम तेरा आचरण, देगा नहीं उबार।।
देगा नहीं उबार, काग कोकिल बन कूके।
आए जब मधुमास,लगेगा कपट बिझूके।।
'शुभम्' न तज मर्याद,कष्ट पड़ते हैं सहने।
मत कर सीमा भंग, नहीं शुभ जो तू पहने।।
🪴 शुभमस्तु !
20.02.2023◆9.15 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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