86/2023
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✍️ शब्दकार ©
🧨 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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मारेंगे भरके रँग - धारी।
हाथों में लेकर पिचकारी।।
फागुन ने है पीटा डंका।
होली आई क्या अब शंका।।
खेलें सब बालक, नर , नारी।
मारेंगे भरके रँग -धारी।।
ऋतुओं के राजा आएंगे।
बेल , पेड़ सब हर्शायेंगे।।
खिलने लगीं फूल की क्यारी।
मारेंगे भरके रँग-धारी।।
पीले पत्ते पेड़ गिराते।
उड़-उड़ कर धरती पर जाते।
पतझड़ होता है नित तारी।
मारेंगे भरके रँग- धारी।।
रँग- गुलाल से हम खेलेंगे।
अम्मा से पैसे ले लेंगे।।
नाचें - कूदें दे - दे तारी।
मारेंगे भरके रँग -धारी।।
भाभी कहती देवर आओ।
खेलो रँग तुम क्यों शरमाओ।
हम छोटे तुम भाभी भारी।
मारेंगे भरके रँग -धारी।।
🪴शुभमस्तु !
24.02.2023◆4.30प.मा.
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