74/2023
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✍️ शब्दकार ©
🎊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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रँग भरके
पिचकारी
आया मधुमास।
वन -वन में
हँसते हैं
खिलखिले पलास।।
तीसी धर
कलशी सिर
मत्त उठी नाच।
भाए क्यों
विरहिन को
कोकिला उवाच।।
पाटल की
बस्ती में
गेंदुई सुवास।
अरहर है
हरहाई
झूमे गोधूम।
मंडराए
अलि दल ये
कलियाँ लीं चूम।
मटर चना
इतराए
बैंजनी उजास।
बौराई
अमुआ की
हरियाली डाल।
पीपल की
तरुणाई
ठोक रही ताल।
आए कब
परदेशी
तिया ले उसास।
घोला है
भाभी ने
बटुआ भर रंग।
आएँ कब
देवर जी
करना है दंग।।
होली है
होली है
करना परिहास।
🪴 शुभमस्तु !
18.02.2023◆3.00प.मा.
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