81/2023
[रोटी,गुलाब,मुँडेर,पाती,पलाश]
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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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💞 सब में एक 💞
पानी बरसे मेघ से,उगते हैं कण अन्न।
रोटी बनती अन्न से,पलता मनुज प्रपन्न।।
घूम रहा संसार ये,निशि-दिन चारों ओर।
गोल-गोल रोटी वही,जिसका ओर न छोर।।
देता सीख गुलाब का,महमह करता फूल।
जीवन क्षणिक अमोल है,साथ फूल के शूल।
संगति सुमन गुलाब की,देती सदा सुगंध।
सुमन सदृश मानव जिए,करके भव्य प्रबंध।
छत - मुँडेर पर नाचता,मृदुल मनोहर मोर।
रिझा-रिझा निज मोरनी,बना हुआ चितचोर।
वेला ब्रह्म - मुहूर्त की, गाता पंडुक गान।
कभी विटप की डाल पर,घर- मुँडेर सम्मान।
पाती ने संवाद के, बदल लिए नव रूप।
मोबाइल हर हाथ में,है युग- यंत्र अनूप।।
प्रिया प्रतीक्षा में खड़ी,लगी पिया से डोर।
कब पाती उसको मिले, भरे नेह प्रति पोर।।
फूले फूल पलाश के,लाल- लाल चहुँ ओर।
तिया अटारी पर खड़ी, देख रही वन -छोर।।
अरुणिम सुमन पलाश के,होली खेलें आज।
चटख रंग की लालिमा,शुभ वसंत का साज।
💞 एक में सब 💞
रोटी रखी मुँडेर पर,वन में खिले पलाश।
हँसता फूल गुलाब का,विरहिन पाती आश।
🪴शुभमस्तु !
22.02.2023◆4.45आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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