80/2023
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✍️ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
सजि बालि रहीं सब खेतनु में,
नव गंदुम झूमि रहे मनभावन।
इत आय गयौ रँग राग भरे,
वन फूलि पलास भए फिर फागन।।
मद यौवन कौ रिसि जाइ नहीं,
मन राखि सदा अपनों तिय पावन।
नव गंदुम पेट भरे तन कौ,
तन भूख नहीं सब दुःख नसावन।।
-2-
इत गंदुम पीत पराग उड़े,
उत वात चलै पछुआ हर्षावति।
कटि को मटकाइ रिझाइ रही,
हरिआभ दुकूल धरे मन भावति।।
धरि मौन चुमावति चूमति है,
परिरंभण लीन भई हँसि गावति।
सब खेत हरे भरि बालिनु से,
भरि दूध गई हिय कों ललचावति।।
-3-
मधुमास लगौ मन झूमि उठौ ,
वन किंशुक नाचि उठे मनभावन।
नव पाटल फूलि गुलाल भए,
नव गंदुम झूमि उठे हरषावन।।
नर - नारि सु देह सकाम भरे,
सब भूलि गए मन कौ अनुशासन।
कहँ जाय छिपे घनश्याम हरी,
रँग डारि करें हमरौ तन पावन।।
-4-
कुहुकी पिक बाग रसलानु में,
सब शाख गईं झुकि बौरि सचेतन।
रस चूसि रहे अलि फूलनु पै,
अलसी कलशी धरि नाचि उठी वन।।
सरसों सरसाइ रही महकी,
जनु चादर पीत रिझाइ रही मन।
उर आतुर धीर नहीं छिन को,
सखि अंग अनंग जलावत आगन।।
-5-
टटकी कलियाँ वन-बागनु में ,
भँवरे मद मत्त भए करि स्वागत।
लतिका लिपटी तरु -बाँहनु में,
तरुनी उर भेद न मानुस पावत।
महुआ महके टपके धरनी,
रँग होलिहु खींचि अनंग बुलावत।
कहतीं ब्रज नारि न देह छुऔ,
नटनागर भाव कुभाव सुहावत।।
*गंदुम = गेहूँ।
🪴 शुभमस्तु !
21.02.2023◆12.45 प.मा.
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