सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

सदा नमन उस प्रेम को 💞 [ दोहा ]

 92/2023


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✍️ शब्दकार ©

💞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बीज उगा जब प्रेम का,नर- नारी  के अंक।

तन-मन से वे एक हो,मिलते युगल निशंक।

जड़-  चेतन संसार में,  एक प्रेम  ही   सार।

आकर्षण ऐसा  भरा,  निर्मित विविधाकार।


उड़े  परागण    प्रेम के,नारी- केसर    पास।

भर बाँहों  में  ले लिया,देता मधुर   सुवास।

चुम्बक उर के प्रेम की,खींच रही निज ओर।

उषा-भानु के साथ से,शोभित सुरभित भोर।


प्रेम गया  विश्वास भी,गया उसी  के   साथ।

भंग सभी रिश्ते वहीं, क्या सेवक क्या नाथ?

सृष्टि - शृंखला की कड़ी,बनती जब हो प्रेम।

शांति सुमति समृद्ध हो,नित निवास गृहक्षेम।


प्रेम - हवस के भेद को,युवा न जानें आज।

जाते  भटक कुराह में,गिरे एक दिन  गाज।

प्रेम  नहीं  अंधा  कभी,जो कहते  वह भूल।

नहीं हवस के चक्षु हों,चलता वह प्रतिकूल।।


प्रेम नहीं साकार ये,विमल हृदय  का  तत्त्व।

आँखों से दिखता नहीं,बिना तमस का सत्त्व।

हम तुम प्राणी जीव सब,अंडज पिंडज ढोर।

उद्भिज उगते प्रेम से,निशि दिन संध्या भोर।


प्रेम नाम है सत्य का,वही जगत  का  ईश।

सदा लीन उस प्रेम में,'शुभम्'विनत है शीश।


🪴 शुभमस्तु !


27.02.2023◆1.00प.मा.

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