62/2023
[फागुन,फाग,पलास,वन, जोगी]
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✍️ शब्दकार ©
🎊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🌹 सब में एक 🌹
शिशिर शीत सी-सी करे,फागुन लाया रंग।
होली के नव फ़ाग गा,मन हो गया मतंग।।
फागुन कहता झूमकर,लाया मैं मधुमास।
पाटल डाली पर खिले,वन में खिले पलास।।
फाग लगाए आग तन,उर में प्रेम-उजास।
गाते - गाते नाचता,हिमगिरि खिला बुराँस।।
बजे ढोल डफ जोर से,स्वरित सुरीला फाग।
हिया झूमता मत्त हो,बगिया में ज्यों नाग।।
देख रही छत पर खड़ी,दूर लपट ज्यों आग।
फूले फूल पलास के,काम उठा उर जाग।।
वन- पलास रँग लाल से,मन में उठी उमंग।
लगता छिप-छिप ताकता,ताने बाण अनंग।।
वन उपवन तरु बेल में,कोंपल विकसे लाल।
लगता है मधुमास ने,आकर किया धमाल।।
वन-वन भटके राम जी,लखन सिया के संग।
नियति-लेखनी जो लिखे,मिटे न उसका रंग।
रावण जोगी-वेश में, ठगने को सिय-राम।
जब आया मिट ही गया,पाया है प्रभु-धाम।।
सजा वेश जोगी बने,धरते ठग का रूप।
जनता को ठगते फिरें,गिरें छद्म भव - कूप।।
🌹 एक में सब 🌹
फागुन जोगी वेश में,
कर ले सुमन पलास।
फाग - गान में लीन है,
वन में अरुण उजास।।
🪴शुभमस्तु!
08.02.2023◆6.15 आ.मा.
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