शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

जीवन- मूल्य अमोल 🪂 [ कुंडलिया ]

 73/2023


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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

जीवन में अनमोल थे,जीवन - मूल्य  अनेक।

भौतिकता ने हर लिया,पावन अमल विवेक।

पावन  अमल  विवेक,प्रेम करुणा  मानवता।

नष्ट  हो   रहे  नित्य, करें दानव  से  समता।।

'शुभम्'हुआ नर श्वान,उधेड़े उर  की  सीवन।

गिरा पतित हो कूप,आज मानव का जीवन।


                         -2-

मानव-तन मिलता नहीं,सहज बिना सत्कर्म।

शेष  नहीं   है  आस्था , पाहन होता    मर्म।।

पाहन  होता  मर्म,नहीं विश्वास    बचा   है।

उर है  उर  से दूर ,नित्य  हा हंत  मचा    है।।

'शुभं'सँभलजा आज,बना अपना पावन मन

जीवन-मूल्य अमोल,बने मत पशु मानव तन


                          -3-

घटता - मिटता ही गया,मानव का  विश्वास।

नैतिकता नरमूल्य की,शेष नहीं अब आस।

शेष नहीं अब आस,दया ममता  नैतिकता।

मरा पड़ा  है नेह, बढ़े  प्रतिदिन  दानवता।।

'शुभम्'बना नर ढोर,घास मूली-सा  कटता।

मन में बैठा चोर, मूल्य का मानक  घटता।।


                         -4-

बढ़ते  वृद्धाश्रम  गए, घटता मानव - मोल।

सास-ससुर-वांछा नहीं,बहू- बोल अनतोल।

बहू - बोल अनतोल,प्रताड़ित करते  रहना।

नहीं बोलते एक,शब्द मुख से क्यों कहना??

'शुभम्'भोगते भोग,विलासी मंजिल  चढ़ते।

पुत्रवधू  सुत  नित्य,पाप के पथ  पर  बढ़ते।।


                         -5-

बेघर  कूकर  ढोर-से, मानव में  बहु   भेद।

छलनी  मनुज चरित्र  की,हुए हजारों  छेद।।

हुए   हजारों    छेद,   वासना छाई   भारी।

भूल गया  निज मोल,मिटी मानवता  सारी।।

'शुभम्' मरा  विश्वास, हाथ में गीता   लेकर।

भौतिकता का दास,मनुज पशुवत है बेघर।।


🪴शुभमस्तु !


17.02.2023◆4.00 प.मा.



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