63/2023
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✍️ शब्दकार ©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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सोलह शुभ संस्कार में,'शुभम्' जनेऊ एक।
आयु बुद्धि बल तेज कर,जाग्रत करे विवेक।
संयम से जीवन जिएँ, धरे जनेऊ सूत्र।
बाँधें बाएँ कान पर, त्यागें जब मल - मूत्र।।
गुरु बालक को ज्ञान दे,सह गायत्री मंत्र।
धरे जनेऊ सूत्र त्रय,बँधे नियम तन - तंत्र।।
बाएँ से दाएँ बँधा, सूत्र जनेऊ मीत।
पावन ही रखना सदा, चले नहीं विपरीत।।
नारी भी अपने गले, पहनें मानो हार।
नियम जनेऊ का यही,'शुभम्'सत्य सुविचार।
न्याय दृष्टि पावन करे,'शुभम्' जनेऊ ध्येय।
तीन सूत्र बंधन यही,ज्ञाता को यह ज्ञेय।।
सप्त ग्रंथि शुभ सूत्र में,धागे हैं बस तीन।
ब्रह्मा विष्णु महेश के,शुचि प्रतिमान नवीन।।
गुरु - दीक्षा के बाद में,सूत्र जनेऊ धार।
बालक निकलें देश में,करने ज़न उपकार।।
कहलाए ये उपनयन, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध।
ब्रह्मसूत्र, बलबंध भी,रख निज बाएँ कंध।।
देव पितृ ऋषि ऋण कहें,सत रज तमस प्रतीक
गायत्री के सूत्र त्रय,है उपनयन सु-नीक।।
🪴शुभमस्तु!
08.02.2023◆11.45आ.मा.
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