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✍️ शब्दकार ©
🧎🏻♀️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जीवन कठिन साधना भारी।
निज विधि से जीते नर-नारी।।
सीधा सरल पंथ जो जाने।
चलने में लगता इतराने।।
सोच-समझ कर जीवन जीना।
नहीं पड़े तुमको विष पीना।।
संत तपस्वी जैसे जीते।
शुभ्रासन में जीवन बीते।।
मंजिल ऊँची चढ़ना चाहे।
नव सोपानों पर अवगाहे।।
निमिष नहीं गिरने में लगता।
पंथ-साधना की क्या समता??
राम बुद्ध ने तप ही साधा।
मिटा राह की सारी बाधा।।
योगेश्वर श्रीकृष्ण निराले।
खुले जनक जननी के ताले।।
शिव को पार्वती ने पाया।
अथक साधना ने रँग लाया।।
एकलव्य ने विद्या पाई।
श्रेष्ठ धनुर्धर की छवि छाई।।
छात्र साधना जो करते हैं।
सदा सफ़लता को वरते हैं।।
मात्र साधना के ही बल पर।
कृषक अन्न से भरता है घर।।
तुलसी ,सूर , कबीर, निराला।
लिखते बच्चनजी मधुशाला।।
'शुभम्'साधना का अधिकारी।
काव्य-सुमन की खिलती क्यारी।।
आओ करें साधना प्यारे।
लाएँ तोड़ गगन के तारे।।
पहले मात - पिता गुरु सेवा।
तभी मिले साधक को मेवा।।
🪴शुभमस्तु !
20.02.2023◆1.45प.मा.
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