85/2023
■●■●■●■◆■●■●■●■●■●
✍️ शब्दकार ©
🍁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■●■●■●■●■●■●■●■●■●
-1-
पीले पत्ते पतित हो, करें धरा - शृंगार।
पतझड़ कहते हैं सभी,कुदरत का उपहार।।
कुदरत का उपहार,स्वच्छता तरु की होती।
आते हैं ऋतुराज , हर्ष से धरा भिगोती।।
'शुभम्' प्रकृति में रंग,गुलाबी उजले नीले।
तीसी पाटल फूल,खिले नव पीले - पीले।।
-2-
लेना भोजन छोड़कर, लंघन करते पेड़।
खाए बिन पीले पड़े,खड़े बाग,वन, मेड़।।
खड़े बाग, वन,मेड़, गिरे सब धीरे - धीरे।
है पतझड़ का रूप,कहें जन पल्लव पीरे।।
'शुभम्'अंकुरित गाभ,नई कोंपल की सेना।
कोमल हँसती लाल,उन्हें अब भोजन लेना।
-3-
होता है जब आगमन, राजा का भू - धाम।
स्वागत में तैयारियाँ,करता है हर आम।।
करता है हर आम,सुघर कुसुमाकर राजा।
गिरते पीले पात, सुमन खिलते नव ताजा।।
'शुभम्'पतित होओस,बीज हर्षित हो बोता।
पतझड़ का शुभ काल,धरा पर ज्यों ही होता
-4-
पतझड़ होता देखकर,हर्षित प्रकृति अपार।
लता विटप-पल्लव गिरें,निर्वसना कचनार।।
निर्वसना कचनार, नीम पीपल रतनारे।।
अधरों में हँस लाल, लगें नयनों को प्यारे।।
'शुभं'पतित द्रुम पात,धरा पर उड़ते खड़बड़।
धरणी चमके मीत, हो रहा देखें पतझड़।।
-5-
पतझड़ की है सीख ये,समय नहीं सम एक।
वसन बदलते वृक्ष भी,होते विदा अनेक।।
होते विदा अनेक,जीर्ण जब वे हो जाते।
गिरते अवनी - अंक,नहीं तरु पर रह पाते।।
'शुभम्'छोड़ता देह,किए बिन कोई खड़बड़।
ज्यों गिरता है पात,धरा पर होता पतझड़।।
🪴शुभमस्तु !
24.02.2023◆3.30प.मा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें