76/2023
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✍️शब्दकार ©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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उजले को करते हैं काले।
उनसे हम कुछ कहने वाले।।
कर्मों का फल सभी भोगते,
नहीं वहाँ लग पाते ताले।
पात्र मृत्तिका के ही चमकें,
पके अवा साँचे में ढाले।
परजीवी बनकर जीते जन,
नहीं पड़ें पगतल में छाले।
रविकर - से वे चमक रहे हैं,
संघर्षों ने प्रतिपल पाले।
बहुत सहज हैं बात बनाना,
ठट्ठा करते बैठे - ठाले।
'शुभम्' उजाला तुम्हें मिलेगा,
बाँटोगे यदि नित्य उजाले।
🪴शुभमस्तु!
20 फरवरी 2023◆6.45 आरोहणम् मर्तण्डस्य।
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