61/2023
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✍️शब्दकार ©
🦟 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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मच्छर टोपी ले उड़ा, सँभले नहीं सँभाल।
जनता चिल्लाती रही,बुरा हुआ है हाल।।
टोपी अंबर में गई, मच्छर जी के संग।
सभी देखते रह गए, भौंचक होते दंग।
ताकत मच्छर की बढ़ी,मानव है बेहाल।
सिर से ले टोपी उड़ा,नंगे सिर के बाल।।
नीले अंबर के तले,जनता की भरमार।
ले कर मच्छर जा उड़ा,मानव की है हार।।
बचो-बचो रे मानवो, मसक हुआ खूँख्वार।
ले मेरी टोपी उड़ा,नर -नारी की हार।।
07.02.2023◆ 4.25 प.मा.
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