60/2023
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✍️शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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फागुन का होता धमाल है।
प्राची का अरुणाभ भाल है।।
चादर सेत न सूरज ओढ़े,
डफ ढोलक की बजी ताल है।
पादप पर पखेरु की हलचल,
नाच उठी हर डाल - डाल है।
कुक्कड़ - कूँ की टेर लगाए,
तमचूरों की नई चाल है।
मानसरोवर में जा देखें,
है प्रसन्न भोला मराल है।
हँसती मुस्काती रवि - किरणें,
फैला स्वर्णिम किरण-जाल है।
'शुभम्' महकते क्यारी- क्यारी,
पाटल - दल मानो प्रवाल है।
🪴शुभमस्तु !
06.02.2023◆5.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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