71/2023
■●■●■●■●■●■●■●■●■●
✍️ शब्दकार ©
🏞️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■●■●■●■●■●■●■●■●■●
उड़ने को अंबर में
माँ वीणावादिनि ने
प्रदान किए पंख,
कल्पना के यान पर सवार
चलता कवि निःशंक,
नहीं कह पाता
आम जन कोई
एक भी अंक।
कवि - कवि की है
अपनी - अपनी सीमा,
कितना कोई माप सका
तेज चले या धीमा,
जनहित के लिए है यह
माँ भारती का वरदान,
छेड़ देता संगीत की
वही कवि तान,
वीणाधारिणी हैं महान।
करना नहीं
हे महामते!
मिथ्या मानव - गुणगान,
बनाए रखना माता की
महिमा का मान,
शब्द- शब्द में देता हुआ
भाव ,रस, छंदों के प्राण,
कवि तेरी कविता का
यही सत प्रमाण।
हे कवि- पक्षी तू
स्वतंत्र है,
न बंधन है तुझे
नहीं बेड़ियाँ,
महकाता रह
आजीवन
काव्य- सुमनों की लड़ियाँ,
बनती रहें
अनवरत उच्चतर सरणियाँ।
'शुभम्' कवि की रचनात्मकता
ही उसका शृंगार है,
चाटुकारिता मिथ्या प्रचार
कवि का संहार है,
जिसके भी वक्ष में
भावों के हित दुलार है
एक सुकवि के लिए
इससे वृहत क्या
उपहार है?
🪴शुभमस्तु !
16.02.2023◆11.15प.मा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें