शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

जीव का यथार्थ अभिज्ञान 🧏🏻 [ अतुकान्तिका ]

 84/2023


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✍️ शब्दकार ©

🧏🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बिच्छू को पता है

कि वह बिच्छू है,

उसका भी

अपना एक वजूद है,

छूते ही डसना है

नियति ही यही है,

नियत भी यही है,

नीयत भी वही है।


देह तो मानव की मिली,

क्या सभी मनुज देहधारी

मानव हैं?

एक ही तरह की देह में

बिच्छू, साँप, खटमल,

अश्व ,सूकर, गर्दभ

आदि -आदि।


 प्रदत्त संस्कारों से पृथक

होता भी क्यों?

हो भी सके कैसे?

देह ही तो है,

जो मात्र एक गेह है,

उसमें  रहने वाला

आत्मा आवश्यक नहीं

मानव हो,

वह म्लेच्छ, क्रूर दानव

हिंसक पशु या पालतू ढोर

कुछ भी हो सकता है।

इसका अभिज्ञान उसे है,

परंतु उससे बाहर नहीं 

आ सकता।


करोड़ों नर देहों के बीच

क्या सभी मानव हैं?

होते यदि सब मानव

तो आज टीवी अखबार,

सोशल मीडिया

अमानवीय गतिविधियों से

भरे नहीं होते,

और भले अच्छे मानुष

यों दुःख से

 तड़प नहीं रहे होते।


जनक -जननी की

शोषक चूसक

उत्पीड़क,

संतति क्या मनुष्य है?

किसी खटमल मच्छर की आत्मा उनमें अवश्य है,

बनाए गए वृद्ध आश्रम

उन्हीं गिद्ध -चीलों की 

खोज है,

जिन्हें बंद कमरों में

दिखाई देती अपनी ही

मौज है!


कर्म फल कभी 

नहीं बदलता,

अक्षम्य है,

अदम्य है,

ये मूढ़ नरदेहधारी,

क्या इतना भी

 नहीं समझता?

नरकों का निर्माण

यों ही नहीं किया गया,

रौरव कुम्भीपाक को

उनसे ही

 आबाद किया गया,

कर्म ही स्वर्ग है,

कर्म ही नरक है,

नरक का फलक है।


🪴 शुभमस्तु !


23.02.2023◆9.00प.मा.

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