94/2023
श्रमिका 🎋
[अतुकान्तिका ]
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✍️शब्दकार ©
🎋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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स्वेद - श्रम से सिक्त,
तरुणी
सब सुखों से रिक्त,
मुख पर हर्ष की
हर रेख,
उसकी भंगिमा तो देख,
ढोती शीश पर
वह भार,
ग्रह- दायित्व से लाचार,
विविध प्रकार।
पास में ही
कहीं है ईंट का भट्टा,
वहाँ होंगे लगे
चिने ऊँचे बड़े चट्टा,
उठाती ईंट,
धूल - धूसर देह,
कहीं होगा
पति संतति गेह,
खा रही लाल भूरी खेह,
नहीं संदेह।
साँवले मेघ दल के बीच
चमकती ज्यों दामिनी -सी,
दूध - सी धवल
दंत - पंक्ति,
कानों में लटके हुए
कुंडल समुज्ज्वल,
फटी मैली शाटिका
परिधान,
नहीं लगती कहीं
मन से परेशान।
सिर पर रखे
पटला
काष्ठ का
नीचे एँडुरी मोटी,
नहीं छोटी,
ढोती ईंट
वह श्रमिका,
खड़ी मुस्कराती
न हो जैसे
उसे तृण मात्र चिंता,
मानो कह रही,
' ईंट ढोकर
पालती परिवार,
नहीं इससे मुझे इंकार,
पेट की खातिर
बहाना स्वेद
कोई चोरी तो नही!'
🪴 शुभमस्तु !
28.02.2023◆6.00 आ.मा.
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