शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

रूढ़िवादिता कुष्ठ है 🪴 [ दोहा ]

 70/2023

  

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✍️ शब्दकार ©

📙 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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पहले  बनी लकीर पर,चलता अज्ञ   समाज।

रूढ़िवादिता  है  वही,सुजन बताते   आज।।

रूढ़िवादिता - गेह  में,  पलती जो   संतान।

शोध न हो नव सोच की,नवाचार का ज्ञान।।


रूढ़िवादिता  पाँव  में,  कसती बेड़ी  -  बंध।

बना मेष मानव चले,ज्ञान -  दृष्टि से   अंध।।

अपनी संतति से कहें, रूढ़िवादिता   छोड़।

चलें आज  के साथ  ही,नाता नव  से जोड़।।


रूढ़िवादिता  कुष्ठ   है, कैसे  बढ़े   समाज।

आँखें  खोले  हम बढ़ें, यही सोचना  आज।।

रूढ़िवादिता  - पंक  में, कुंजर फँसे  हजार।

कैसे   वे   बाहर   चलें, रहते  वे   लाचार।।


रूढ़िवादिता  त्यागकर , करते राह  प्रशस्त।

लिपि ललाट लिखते वही,वे अपने वर हस्त।

दिशा रुग्ण अनुलोम की,चलता है जो मेड़।

रूढ़िवादिता- कूप में,ज्यों गिरती  है  भेड़।।


रूढ़िवादिता - त्याग ही,साहस की पहचान।

प्रगति-पंथ पर जो चले,बढ़ता जग में मान।।

रूढ़िवादिता से नहीं,कभी 'शुभम्' का नेह।

करता नवल प्रशस्त पथ,बनता स्वर्गिक गेह।


🪴शुभमस्तु!


15.02.2023◆11.45पतन्म मार्तण्डस्य।

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