78/2023
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🦚 शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
रिश्ते जनक-जननि संतति के,
जब पावनतम सुमधुर होते।
परिजन सब आनंद - लहर में,
नित्य नए हर्षद क्षण बोते।।
नींव स्वार्थ - धरणी पर होती,
वहीं कलंकित होते रिश्ते,
जननी-जनक सभी संतति नित,
आजीवन रहते हैं रोते।।
-2-
कुसुमाकर कोयल के रिश्ते
टेसू ,पाटल - सुमन जानते।
बौराई अमुआ की डाली,
हो प्रसन्न निज अंग तानते।।
पीपल लाल- लाल अधरों से,
मुस्काता गुन - गुन गाता है।
बालाओं के अंग भरे मद,
अँगड़ाई की तान ठानते।।
-3-
कागा के मराल से रिश्ते,
कैसे सुघर मधुर हो पाएँ?
सामिष है आहार काग का,
कैसे हंस-काग सँग खाएँ??
सखा वही कहलाते जब दो,
एक थाल में भोजन खाते।
'शुभम्' बने वे उत्तर- दक्षिण,
करें विकर्षण भागे जाएँ।।
-4-
रिश्ते की यदि नींव ठोस हो,
थिरता रिश्तों को मिल पाती।
बालू पर दीवार न टिकती,
कोयल क्यों जाड़ों में गाती??
वैसे उपादान वांछित हैं,
जब गाए कू - कू कर गाना।
सुमन खिलें बौराएँ अमुआ,
किसलय पीपल की मुस्काती।।
-5-
गागर में हों छिद्र बहुत से,
बूँद नहीं पानी रुक पाता।
रिश्ते रिसने लगें कहीं जो,
चौराहे पर घट फट जाता।।
'शुभम्' रहे विश्वास अटल तो,
आँच नहीं रिश्तों पर कोई।
आजीवन वह अमर सदा ही,
हर समाज उसके गुण गाता।।
🪴शुभमस्तु !
20.02.2023◆10.30 आ.मा.
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