67/2023
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✍️ शब्दकार ©
🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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एक रंग सब फूल न होते।
चुभते जो सब शूल न होते।।
शब्द- बाण बेधते हृदय को,
हितकारी अनुकूल न होते।
स्त्रीकेसर नित पाती है,
वे परागकण धूल न होते।
सोच समझकर शब्द निकलते
वाणी - निःसृत भूल न होते।
साधु-संत धरते निज तन पर,
चीवर ऊल - जुलूल न होते।
हया नहीं नयनों में कोई,
नारी - देह दुकूल न होते।
'शुभम्' सभ्यता नित्य सिखाती,
मानव मूढ़ समूल न होते।
🪴शुभमस्तु!
13.02.2023◆6.45आ.मा.
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