बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

एक रंग के फूल न होते 🪷 [ गीतिका ]

 67/2023


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✍️ शब्दकार ©

🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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एक  रंग  सब  फूल  न  होते।

चुभते  जो  सब  शूल न होते।।


शब्द- बाण  बेधते  हृदय  को,

हितकारी   अनुकूल  न  होते।


स्त्रीकेसर    नित    पाती    है,

वे   परागकण  धूल  न   होते।


सोच समझकर शब्द निकलते

वाणी - निःसृत  भूल  न होते।


साधु-संत धरते  निज तन पर,

चीवर  ऊल - जुलूल   न  होते।


हया  नहीं   नयनों   में   कोई,

नारी - देह   दुकूल   न   होते।


'शुभम्' सभ्यता नित्य सिखाती,

मानव   मूढ़   समूल   न होते।


🪴शुभमस्तु!


13.02.2023◆6.45आ.मा.

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