सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

आस्तिक का संज्ञान🪦 [ कुण्डलिया ]

 91/2023

 

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✍️ शब्दकार ©

🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

आशा ही तो ईश है, आस्तिक का    संज्ञान।

अस्ति शब्द में हैं बसे,आस्तिकता  के  प्रान।

आस्तिकता के प्रान,अटल विश्वास न  जाए।

कण-कण उसकी सृष्टि,वही भगवान कहाए।

'शुभम्'जीवनी-शक्ति, मिटाती सदा निराशा।

त्याग क्षुद्र हंकार,अमर रख अपनी आशा।।


                          -2-

कर्ता     ने   जैसा   रचा, वैसा  ही   संसार।

जो  कृतज्ञ  उस  ईश का,स्वीकारे  उपकार।

स्वीकारे  उपकार, उसे आस्तिक  नर  जानें।

नास्तिक  टूटा  तार,नहीं सच को  सच मानें।

'शुभम्' सत्य  प्राकट्य, विश्व - सृष्टा   संहर्ता।

कण-कण में प्रभुवास,सृष्टि रचना का कर्ता।


                         -3-

माना  जिसने  ईश को,विविध रूप  आकार।

वही आस्तिक  तत्त्व है,संकल्पित सुविचार।

संकल्पित   सुविचार,  बना देवों  के आलय।

करके दृढ़   विश्वास,पूजता उनको   निर्भय।

'शुभम्' अहं में लीन, नहीं निज को पहचाना।

मात्र   कूपमंडूक,  अबल सृष्टा   को   माना।


                         -4-

रहता कण-कण में वही,एक मात्र भगवान।

तपते खंभे में बसा,लघु पिपीलिका  जान।

लघु पिपीलिका जान,कीट, पशु,खग, नर,नारी।

लता विटप में वास,खिले फूलों की क्यारी।

आस्तिक शुभं स्वरूप,भार गिरि भू का सहता।

सबका सबलाधार,परम अणु में वह रहता।


                          -5-

पाहन में   भी देव हैं, यही अस्ति   का ज्ञान।

नयन मूँद रवि क्यों छिपे,उर में कर संधान।

उर में  कर  संधान,चराचर ही   तब   जागे।

आस्तिक की पहचान,तमस अंतर का भागे।

'शुभम्' जनक है सत्य,जननि तेरी संवाहन।

क्या वे  दोनों  झूठ,हृदय क्या तेरा   पाहन?


🪴शुभमस्तु !


27.02.2023◆11.30 आरोहणम् मर्तण्डस्य।

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