शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

चलें प्रकृति की ओर 🌳 [ दोहा ]

 57/2023

 

[फसल,सोना,कृषक,कुसुम, बसंत]

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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       🌻 सब में एक 🌻

श्रमजल से ही सींचता,अपनी फसल किसान

अन्न, शाक,फल  दे रहा, दाता सदा  महान।।

मौसम के आघात से,फसल  हुई  बरबाद।

आसमान में  देखता, करे कृषक प्रभु-याद।।


उत्पादित  सोना  करे,धरती माँ  का  रूप।

पालन हो जन-सृष्टि का,कृषक धरा का भूप।

संतति सोना है  वही, करती  जो उपकार।

मात-पिता गुरु धन्य वे,मिलता नेह अपार।।


कर्षित कर अवनी-मृदा,कृषक  उगाए अन्न।

मानव   की   रक्षा   करे,  देश बने    संपन्न।।

सैनिक  सीमा  पर डटा,रक्षा का  प्रतिमान।

कृषक स्वेद अपना बहा,करता अन्न प्रदान।


कुसुम स्वेदजल से खिलें,उनकी अलग सुगंध

अलग तृप्ति फल दें वही,जो फलते निर्बंध।।

कुसुम सुगंधित देखकर, होता  हर्ष  अपार।

पत्थर का अंतर जहाँ,दिखता उसे न सार।।


फागुन में होली जली, हुआ वर्ष  का  अंत।

चैत्र और  वैशाख  में, आया नवल  बसंत।।

आते  मास बसंत के,प्रकृति  बदलती  रूप।

खिलतीं कलियाँ बाग में, स्वागत में ऋतु-भूप


    🌻 एक में सब 🌻

कृषक -फसल सोना बनी,

                      खिलते कुसुम अपार।

आया   नवल   बसंत   है,

                       छाया   मद  -  संभार।।


🪴शुभमस्तु !


01.02.2023●5.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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