475/2024
©व्यंग्यकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
ऊपर वाले को कौन नहीं जानता।उसको न मानने वाले भी प्रकारांतर से उसे मानते ही हैं। वह है,इसीलिए तो उसके न मानने की बात लोग करते हैं।जब बुरा वक्त आता है तो अच्छे - अच्छे नास्तिक भी उसे मानने को विवश हो जाते हैं।ऐसे नहीं तो ऐसे सही।आस्तिक लोग तो यह भी कहते हुए पाए जाते हैं कि ऊपर वाले की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता।जब सब कुछ ऊपर वाला ही हिलाता-झुलाता है,फिर लोग जब ऊपर की कमाई लेते हैं तो उसे क्यों अनदेखा कर जाते हैं।क्यों मनमाना कर जाते हैं। क्यों अनजाने हो जाते हैं।कैसे ऊपर की कमाई का तानाबाना बुन पाते हैं।
आम हो या खास, दूर हो या पास, भरा उदर हो या किए हुए हो उपवास ;ऊपर वाले की मान्यता,पूजा -पाठ,भक्ति भाव,सबको सहज और सहर्ष स्वीकार है। ऊपर की कमाई में सम्पन्नता की भरमार है। ऊपर की कमाई से खुल रहे उनके उन्नति के सर्व द्वार हैं। क्या आपको मेरी इस बात से इनकार है? मैं तो कहता हूँ कि छोटा हो या बड़ा ,आम या खास, बालक हो या बूढ़ा, नर हो या नारी - सभी को लगी है ये आम बीमारी। लोगों की खिल - खिल उठी हैं फूलों की क्यारी। इसीलिए जब तक नहीं आती है घर में ऊपरी कमाई तब तक तो खुश नहीं रहती घर की लुगाई। अब यह अलग बात भी नहीं कि वह अपनी हो या पराई; सभी को चाहिए ऊपरी कमाई। ऊपरी कमाई के सामने पुण्य, पूजा, प्रण, परमात्मा सब कुछ नगण्य हो जाता है।ये ईश पूजक आदमी ऊपर की कमाई का इतना दीवाना हो जाता है कि उसे इतना भी होश नहीं रहता कि वह सामने वाले का गला काट रहा है। किसकी गर्दन पर छुरा फेर रहा है,किसके बच्चों के पेट पर लात मार रहा है। अपने को आबाद करने के लिए किसे बरबाद कर रहा है।
ऊपरी कमाई या ऊपर की कमाई के अनेक रूप - स्वरूप हैं।ये अलग बात है कि उनके कुरूप ही कुरूप हैं ,क्योंकि वह तुम्हारी नहीं किसी और की कमाई के यूप हैं।वे किसी के लिए कितने ही कुरूप हों, परन्तु प्रापक के लिए सु -रूप ही सु-रूप हैं।मिलावट,रिश्वत,दलाली,कमीशन ,दहेज सब में ऊपरी कमाई की जान बसती है।इसे अन्याय से कमाई हुई अन्य आय की शुद्ध शुद्ध हिंदी संज्ञा से सम्मानित किया जा सकता है।अपनी कन्या के लिए वर की तलाश करते समय लोग उसकी ऊपरी कमाई पर अधिक और वास्तविक ईमान की कमाई पर कम नज़र रखते हैं। उसका बाप कितना अधिक दहेज दे सकता है,यह आकलन भी वे सहज रूप में कर लेना चाहते हैं।यह दहेज भी कन्या -धन के नाम पर लिया जाने वाला ऊपरी कमाई का सघन स्रोत है।लिया तो दाता की अनिच्छा से ही जाता है,किन्तु कहा यही जाता है, हमने माँगा नहीं,वे स्वेच्छा से अपनी लड़की को दे रहे हैं।
कर्मचारी, अधिकारी,सरकारी या गैर सरकारी ;सब ही ही हैं ऊपरी आय के भिखारी।नेता ,डाक्टर,इंजीनियर ; यहाँ कौन बचा है जो ऊपरी कमाई का रसिया न हो। शिक्षक का पेट भी नौकरी से नहीं भरता तो वह क्लास का कोर्स कोचिंग में पूरा करता है। बेचारा कितना ईमानदार है ! इसीलिए या तो क्लास में जाता ही नहीं ,और यदि जाता है तो विद्यार्थियों को इधर -उधर की बातों में उलझा कर कोर्स को कोचिंग में पूरा करने का पक्का वादा करता है और उसे निभाता भी है।यही हैं आजकल के पूजनीय गुरु जी।जहां से ईमानदारी के प्रशिक्षण की शिक्षा होती है शुरू भी।
दुनिया में अनेक व्यवसाय हैं।उनमें ऊपरी कमाई का बहुत बड़ा संजाल है।दाल में नमक के बराबर तो उचित है ,न्याय संगत है किंतु दाल ही नमकीन हो जाए तो यह सीमा की पराकाष्ठा है।घी,तेल,दालें, मसाले, धनिया ,मिर्च, हल्दी, दूध,फल ,सब्जी आदि सभी स्थानों पर ऊपरी कमाई मिलावट के रूप में सुलभ है। इस आदमी के पेट के गड्ढे को कोई ऊपरी कमाई भी काम आने में हिचहिचाती है।यह वही त्रिपुंडधारी, जनेऊधारी,मालाधारी, घण्टाबजैया, करता ता ता थैया, परिक्रमा लगैया, सजनी हो या सैयां, बहना हो या भैया,: सब जगह है नम्बर दो वाला सबसे बड़ा रुपैया।
नेता विधायक या सांसद बनते ही कुछ ही वर्षों में खाक पति से लाख पति नहीं, अरब खरब नील पद्म और महापद्म पति के सिंहासन पर विराजता नजर आता है। अंततः यह चमत्कार भी तो वेतन की कमाई का नहीं ,ऊपरी कमाई का ही है।बेबस जनता के खून से निचोड़ी गई दवाई का ही है।जो सच के विरुद्ध आवाज उठाए उसे सलाखों के पीछे ठूँस दो। सत्य बोलना अपराध हो गया है।झूठ हवाई यान पर सवार है।यह भी ऊपरी कमाई का चमत्कार है। देश सुधार का नारा लगाते रहिए और छुपे -छुपे रसोगुल्ले खाते रहिए।दूसरों को उपदेश देते रहिए और मेज के नीचे से उत्कोच लेते रहिए। आखिर उनके पालित दलाल किस दिन काम आएँगे! यों ही देश आगे बढ़ता रहेगा और ऊपरी कमाई से सम्पन्न होता रहेगा। मेरा देश महान जो है। महान था और रहेगा भी।
शुभमस्तु !
19.10.2024●10.45 आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें