488/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
शब्दों के
परिसर में आओ
भावों के हम दीप जलाएँ।
कोने - कोने में
अँधियारा
नेह - वर्तिका ज्योति भरेगी।
मुँडगेरी पर
पिड़कुलिया की
मीठी ध्वनि तम घोर हरेगी।।
मधुर व्यंजना के
व्यंजन से
घर आँगन मंदिर महकाएँ।
दिया बेचतीं
कमली विमला
उनकी भी तो दीवाली है।
उनसे क्रय कर
दिये जलाएँ
पीटें सब बालक ताली है।।
शब्द शक्ति त्रय
अलंकार रस
कविता का नव छंद सजाएँ।
रमा शारदा का
स्वागत है
स्वच्छ करें मन का हर कोना।
निर्धन का
अपमान नहीं हो
बीज नेह के मिलजुल बोना।।
रंग - रंग की
कविता बाँचें
गीत एकता के शुभ गाएँ।
शुभमस्तु !
28.10.2024●1.00प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें