रविवार, 27 अक्तूबर 2024

तोड़ छंद के लय रस बंध [नवगीत]

 478/2024

   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कविता जी

किस ओर चलीं तुम

तोड़ छंद के  लय रस बंध।


 बाला अति

आधुनिका कोई

फ़टी जींस जाँघों पर धार।

निकल पड़ी है

बियावान में

वसन देह के तारम -तार।।

कैमीकल का

लगा फुहारा

नहीं सुहाती  उड़ती  गंध।


तुकें बेतुकी

शब्द अनमने

भावशून्य रचना बेजान।

कुछ भी

कहने से है मतलब

राग  भैरवी छिड़ा विहान।।

कवि कहता

मैं कालिदास हूँ

भले कहे कोई कवि अंध।


कहना क्या 

कुछ पता न कवि को

समझ नहीं इतनी विभ्राट।

रेशम की 

साड़ी में सोहे

रँगा हुआ हो   कोई  टाट।।

'शुभम्' काव्य के

नाम कबूतर

करें गुटरगूँ दुर्बल कंध।


शुभमस्तु !


20.10.2024●5.45 प०मा०

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