453/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कहती हैं
कम नहीं किसी से
बदल गई है चाल।
अबलापन का
तमगा टाँगे
चली जा रहीं गैल।
पहल अगर जो
कर दी तुमने
निकल पड़ेगा मैल।।
उड़ती चूनर
फर -फर फर-फर
बिखरे सूखे बाल।
चित भी मेरी
पट भी मेरी
मैं दुर्गा का रूप।
तन -मन से
पूज्या चंडी भी
उच्च शिखर मैं कूप।।
रक्षक और
भक्षिका तेरी
नर्क , स्वर्ग की ढाल।
'शुभम्' पहेली
तुमने माना
करो न क्यों स्वीकार !
सद्गुण का
भंडार सदा ही
विकृत हृदय विहार।।
चलना हो तो
चलो साथ में
संग मिलाके ताल।
शुभमस्तु!
02.10.2024●12.30प०मा०
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