रविवार, 27 अक्तूबर 2024

अहोई [ अतुकांतिका ]

 483/2024

                  


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


'अहोई'

अर्थात जो नहीं होनी थी

उसे होनी में

बदल दे

वह सामर्थ्यवती

एक आदर्श 

भारतीय नारी ही

हो सकती है।


अपने पति,

अपनी संतति के लिए,

क्या कुछ नहीं करती,

क्या कुछ नहीं कर सकती!

ऐसा जज़्बा जोश और जुनून

भला और है भी कहाँ?


पति से न बने तो

पति को बदल दे,

पश्चिम की सभ्यता

यही तो 'सुफल' दे!

किंतु ऐसा असम्भव है

भारत की धरती पर।


शराबी हो,

जुआरी हो,

पत्नी पिटैया हो,

फिर भी पूजा जाएगा,

सास का पूत

बदला नहीं जाएगा,

सत्यवान भी

यम -पाश से

सावित्री द्वारा

मुक्त कर लिया जाएगा।


अहोई को

होई में बदल देने वाली,

आदर्श माँ,

इसी माटी में जन्मी है,

देश भक्ति के लिए

पन्ना धाय माँ

उदय को अस्त होने से

बचाती है,

बनवीर की तलवार से

अपने सुत  चंदन का 

बलिदान कर जाती हैं,

धन्य हैं ऐसी माताएँ!

पश्चिम की हजारों माएँ

पन्ना माँ के दुस्साहस पर

बलि- बलि जाएँ!

ऐसी ही जननी- गाथा

'शुभम्' कह पाएँ।


शुभमस्तु !


24.10.2024●12.15प०मा०

                ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...