गुरुवार, 17 अक्तूबर 2024

चोरी का गुड़ [अतुकांतिका]

 474/2024

           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


गुड़ - गुड़ की

गुडविल ही न्यारी,

खिले अधर की

कलिका क्यारी,

चोरी करने में भी

अति श्रम लगता है।


नकली डाक्टर

अस्पताल भी,

सीख लिए गुर

भ्रमर जाल भी,

बिना पढ़े जब

नोट छप रहे,

शिक्षा सब बेकार।


डिग्रीधारी

बैठे टापें,

नकली से वे

असली छापें,

मेरा देश महान।


छापा पड़े

छिपें वे बिल में,

छपे हुए 

जो रक्खे घर में,

देकर बेड़ा पार,

क्या कर ले सरकार?


'शुभम्' सत्य 

जिसने भी बोला,

कहते उसने ही

विष घोला,

पकड़ा गया

चोर का झोला,

तीन ढाक के पात।


शुभमस्तु !


17.10.2024●2.45 प०मा०

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