मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

नव सभ्यता आई हुई! [ नवगीत ]

 450/2024

           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पहन कर 

कुछ चीथड़े

नव सभ्यता आई हुई।


आँख में 

पानी नहीं है

है नुमाइश देह की ये,

खूब देखो

रोकना क्या

भीगती है मेह में ये,

जो कभी 

भूषण रही थी

आज है पूरी  मुई।


बाप देखे

भ्रात देखे

देखतीं सड़कें सभी ये,

बेहोश 

जिज्ञासा मनुज की

अनहोनियाँ जिंदा तभी से,

संवेदनाएँ

मास्क पहने

चुभती नहीं जैसे सुई।


पंक में 

पत्थर उछालें

दोष कीचड़ का बताएँ,

जींस जाँघों

पर उधेड़ी

पकड़ लड़कों को सताएँ,

बेटियाँ ये

नवल युग की

उछलतीं  करती  उई!


शुभमस्तु !


30.09.2024●2.00प०मा०

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