बुधवार, 16 अक्तूबर 2024

सरस सुभावों से सजी [ दोहा ]

 472/2024

      

[जीवंत,सरोजिनी,पहचान,अपनत्व,अथाह]

               सब में एक

सरस  सुभावों  से  सजी, रचना  हो जीवंत।

मनुज प्रभावित हों सभी,रसिक गेरुआ संत।।

माटी  की  प्रतिमा   बना, मूर्तिकार दे   रूप।

सुघड़  और जीवंत का,संगम अतुल अनूप।।


आँखें  सरस सरोजिनी,हे कामिनि  रतनार।

मैं रस लोभी  नेह  का,बरसाती - सी प्यार।।

अमराई सामीप्य में, शुभ  सरोजिनी ताल ।

शरदागम   में    खेलते,कितने बाला -बाल।।


छोटी - सी पहचान भी,  बनी प्रणय   संबंध।

ज्यों गुलाब वेला मिले,अद्भुत अमल सुगंध।।

बहुत  दिनों के बाद में, आज मिले हो  मित्र।

बिसरी -सी  पहचान का,उड़ता है नव इत्र।।


शुभ प्रभाव अपनत्व का,जब लाता है रंग।

आत्मीय   लगते   सभी, उमड़े  भाव तरंग।।

चमत्कार अपनत्त्व का, दुनिया में    बेजोड़।

पशु- पक्षी लगते निजी,मुख न सकोगे मोड़।।


आज आश्विनी पूर्णिमा,  उमड़ा   प्रेम अथाह।

हँसता है शशि व्योम में,रस निधि में अवगाह।।

आई  करवा   चौथ  है,तिय  का प्रेम अथाह ।

आज  बना  पति  देवता, पूजा जाता  वाह!!


               एक में सब

हे जीवंत सरोजिनी,परिचय ही पहचान।

मम अथाह अपनत्त्व की,पावन अनुसंधान।।


शुभमस्तु !


16.10.2024●5.30आ०मा०

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