सोमवार, 28 अक्तूबर 2024

चाह रहे सब [ गीतिका ]

 487/2024

                

©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चाह   रहे  सब   सफल  सिलसिले।

मन का   चाहा   कहाँ  कब मिले !!


तपे      निदाघ    जेठ     में   भारी,

तब  रसाल  हो    सके  पिलपिले।


श्रम  का  फल    होता   है   मीठा,

रहते  जीवन   में   तब  न    गिले।


कर्मों   पर    विश्वास    नहीं    हो,

नहीं   जीतते   मनुज  नव   किले।


मीठे  फल    उनको    ही   मिलते,

चलते -   चलते  पाँव    हैं    छिले।


नहीं   धूप   में     बाल    पके   ये,

चमक  रहे जो  आज    चिलचिले।


'शुभम्'   अहर्निश    चलते   रहना,

शाखा  पर  बहु  सुमन सद  खिले।


शुभमस्तु !


28.10.2024●4.30आ०मा०

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