471/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
तुण्दिल पेट
साँड़ -से तन का
बोझ उठाती है धरती।
अभी और भी
खाना चाहें
पेट तोंद पर फेर रहे।
भोग सामने
रखा हुआ है
ललचाए दृग हेर रहे।।
सबसे अधिक
कौन खा पाए
बता रही दाढ़ी हिलती।।
नहीं देश के
काम आ सके
भारी - भारी मोटे देह।
सँकरा दर है
कुटियाओं का
हो जाना है जिसको खेह।।
रँगे गेरुआ
तन पर धारे
दुनिया पद -पूजा करती।
अंधे हैं
विश्वास मनुज के
तन से काम नहीं होना।
रँगिया बाबाओं
को घर - घर
भिक्षा का दाना बोना।।
'शुभम्' कर्म से
विरत सभी ये
करने पर नानी मरती।
शुभमस्तु !
15.10.2024●11.15आ०मा०
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