467/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आता है आकर चला जाता है,
कभी आकर ठहर जाता है,
मेरा विचार।
सोते जागते या उठते बैठते,
करते हुए काम हँसते चहकते,
भीतर तक गहर जाता है ,
मेरा विचार।
सोने भी नहीं देता है कभी,
हिलने भी नहीं देता है तभी,
इधर - उधर नहीं जाता है,
मेरा विचार।
खिल उठती हैं बाग में कलियाँ,
चहकने लगती हैं नन्हीं चिड़ियाँ,
मुस्कराता हँसाता लहर जाता है,
मेरा विचार।
कभी अतीत है कभी वर्तमान है,
कभी भविष्यत में गतिवान है,
आठों पहर आसन लगाता है,
मेरा विचार।
मैं अपने ही विचारों का दास हूँ,
दूर पल को नहीं सदा आसपास हूँ,
कभी गाँव तो कभी शहर जाता है,
मेरा विचार।
शुभमस्तु !
11.10.2024●2.30प०मा०
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