492/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
ऐसा ही कुछ
जतन करो प्रिय
बारह मास दिवाली हो।
सख्य और
सौहार्द्र भाव का
हर मन में उजियारा हो।
बैर भाव
मिट जाय धरा से
त्रिपथगा की धारा हो।।
हो मुस्कान
सभी अधरों पर
उषा काल की लाली हो।
मेरी धरती की
माटी में
कालिदास आए तुलसी।
वाल्मीकि वर
कृष्ण व्यास से
फूली और फली विकसी।।
यहाँ वहाँ
बरसे समर्थता
सबके मन खुशहाली हो।
शोषण और
मिलावटखोरी
से उन्मुक्त देशवासी।
मानव को
मानव ही समझें
शासन के समर्थ शासी।।
'शुभम्' कर्मरत
युवा सभी हों
तन मन से बलशाली हो।
शुभमस्तु !
31.10.2024●9.45 आ०मा०
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