493/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
दीप जले तो जले
किसी का दिल न जले
आदमी आदमी को
क्यों कर छले?
अंततः कुछ लोग हैं दोगले।
गधे घोड़ों से भी
सस्ता है आदमी,
अब बची है कहाँ है
उसकी आँखों में नमी!
बोझ से दबी जा रही है जमीं।
न माँ - बाप की कीमत
न गुरुजन का मान,
आदमी न देवता था
न देवता होना सम्भव
हुआ है ,न हो सकता है,
है वह मात्र दानव हैवान।
धन ही माँ- बाप
सर्वस्व वही
वही है भगवान,
जैसे हैं माँ- बाप
वैसी ही संतान!
मेरा भारत महान।
उठाते ही दुम
भेद खुल गया,
वह मर्द नहीं था
रहस्य धुल गया,
आओ
आ भी जाओ 'शुभम्'
दुमों की परख करते चलें,
छले जाएँ न किसी से
न किसी को हम भी छलें।
शुभमस्तु !
31.10.2024 ●2.00प०मा०
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