459/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
क्वार महीना
विदा हो गए
पितर लोक को पितर सभी।
वर्षा बूढ़ी हुई
धरा पर
अंबर दिखता है नीला।
यहाँ वहाँ पर
फूल उठे हैं
झुरमुट काँस हुआ ढीला।।
हाथ हिलाते
तने खड़े हैं
उत्फुल्लित उर लगे अभी।
मेंड़ खेत की
हरियाली मय
छतें घरों की सीढ़ी भी।
काँस सुलंबित
नाच उठे हैं
मानो बूढ़ी पीढ़ी-सी।।
हिल उठते हैं
झूम पवन में
मुकुट भाल के कभी- कभी।
'शुभम्' बुढ़ापा
आता है तो
पकने लगते सिर के बाल।
ज्ञान - वृद्ध जब
होता कोई
बदली -बदली होती चाल।।
नहीं एक सम
दिन रह पाते
जीवन के खुशहाल न भी।।
शुभमस्तु !
08.10.2024●4.15आ०मा०
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