485/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चोरी करते
डर लगता है।
सेंध लगाऊँ
मैं कविता में
या पूरी ही हर लूँ।
रीती गागर
अपनी कोरी
तुरत लबालब भर लूँ??
पकड़े जाने का
खतरा है
चोरी करते
डर लगता है।
शब्द चुराऊँ
भाव चुराऊँ
बंध चुराऊँ मैं दो एक।
नाम बदलकर
ग्रंथ छपाऊँ
मन कहता यह काम न नेक।।
मैदां खुला
यहाँ पसरा है
चोरी करते
डर लगता है।
सूर कबीरा
कालिदास- सा
बनने का है मुझको चाव।
पकड़े गए
सेंध के मुँह पर
मार पड़ेगी भी बे भाव।।
जैसा भी तू
लिख, जो लिखता
चोरी करते
डर लगता है।
शुभमस्तु !
27.10.2024●3.45प०मा०
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