490/2024
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
टाई सूट बूट
कर धारण
मैं भी ऐसा तन जाऊँ।
फटेहाल क्यों
रहूँ हमेशा
मुझको ऊपर उठ जाना।
विद्यालय में
शिक्षा पाकर
जग में नाम कमा लाना।।
सबके दिन
रहते न एक सम
ठाठबाट से सज पाऊँ।
फटे चीथड़े
भले आज हैं
मेरे तन पर तो क्या है?
झोला लटका
हुआ सड़ा-सा
मेरा सपना ऊँचा है।।
मैंने भी सपना
देखा है
बाबूजी बन इठलाऊँ।
माली हालत
नहीं ठीक है
तो ऐसे ही क्या रहना ?
परिश्रम करूँ कठिन
निशिदिन जो
चमकेगा तन पर गहना।।
'शुभम्' एक दिन
भाग्योदय हो
सर! सर! सर! सर !! कहलाऊँ।
शुभमस्तु !
29.10.2024● 2.15प०मा०
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