451/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
श्वेत केश
निस्सार नहीं हैं
वर्ण ज्ञान का ये समवेत।
इंद्रधनुष -
सौंदर्य समाया
देख सको तो देखो तुम।
धी के घी में
तप्त हुए हैं
अनुभव,इन्हें न समझें दुम।।
ये तन-मन
बेकार नहीं हैं
समझ रहे जो सूखी रेत।
दुत्कारा
इनको दुनिया ने
बेटा - बहू न डालें घास।
वृद्ध आश्रम
में झोंका है
नहीं चाहते अपने पास।।
पतन आ गया
तेरा मानव
चेत ! चेत !!हे यौवन चेत।
वृद्ध पिता - माता
के चरणों
की तू नहीं सुनहरी धूल।
शांति नहीं
मिलनी आजीवन
वैभव सुख में जाता भूल।।
'शुभम्' पाँव
धो - धो कर पी ले
मरा आँख का पानी हेत।
शुभमस्तु !
01.10.2024●5.15आ०मा०
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