रविवार, 13 अक्तूबर 2024

धीरे- धीरे होंगे दूर [ नवगीत ]

 466/2024

         

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


धीरे -धीरे 

पास आ गए

धीरे -धीरे होंगे दूर।


वे भी पल थे

हमें मिलाया

नहीं  जानते  थे  किंचित।

बिना मिले

अब रहें न पल भी

जीवन का यह भी है ऋत।।

अलग वृक्ष के

सुमन युगल हम

पूरक हैं दोनों भरपूर।


कौन जानता

भावी पल को

कब क्या  कैसे  हो जाए।

एक बाग में

खिलकर दोनों

कब तक जाने मुस्काए??

विधना के 

हाथों की पुतली

कैसे कब हो जाए चूर!


नट - नटिनी- सा

हमें नचाए

जिसके   हाथों   में   है   डोर।

आए नहीं

निजी इच्छा से

जाना भी है कब किस ओर??

हाथी हो 

या हो पिपीलिका

गति सबकी सम निर्बल सूर।


शुभमस्तु !


11.10.2024●11.00आ०मा०

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