बुधवार, 30 अक्तूबर 2024

आलोकित उजियार है [ दोहा ]

 491/2024

       

[आलोकित,उजियार,समृद्धि,प्रदीप्त,ज्योतिर्मय]


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                  सब में एक

तमसावृत श्यामल निशा,आलोकित हर ओर।

चाँद  नहीं    है  चाँदनी, तदपि  सुनहरा  भोर।।

घर  - आँगन  जगमग  करें, छत दीवार  मुँडेर।

आलोकित  तन-मन सभी, दीपावली-उजेर।।


रूप रुपहला  रात का, दुग्ध  सदृश उजियार।

कार्तिक  अमा निशीथ का,एक पृथक  संसार।।

अमा - निशा  में  रूपसी,तव दैहिक उजियार।

मुस्काती ज्यों चंद्रिका,अविरल ज्योति अपार।।


सुख  - समृद्धि आती  वहाँ,जहाँ सुमति आनंद।

अलंकार   मन  मोहते, ज्यों  कविता के  छंद।।

आशा  ज्योति  सुदीप  की,लाती सघन  समृद्धि।

बरसे नित धन- धान्य ही,सदा सौम्यता - वृद्धि।।


रहता  भाग्य प्रदीप्त तब,जले कर्म की ज्योति।

कर्मशील  मानव  बने,  रहे न  मन में    छोति।।

दीपोत्सव मनभावना,जल  थल असिताकाश।

अगणित दीप प्रदीप्त हैं,ज्यों जीवन में आश।।


ज्योतिर्मय   करते   रहें, आशाओं   के  दीप।

ज्यों   मुक्ता  को  अंक में,गोपन करती  सीप।।

ज्योतिर्मय  करते  सदा ,भाग्य तुम्हारे    कर्म।

बीज    वपन  जैसा   करे, बने  वही तव   धर्म।।

                     एक में सब

आलोकित उजियार है,ज्योतिर्मय   संसार।

हर समृद्धि बरसे यहाँ, हो प्रदीप्त जन प्यार।।


शुभमस्तु !


30.10.2024 ●3.15आ०मा०

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