रविवार, 27 अक्तूबर 2024

तीन ढाक के पात [नवगीत ]

 476/2024

            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कुछ दिन बिल में

घुसकर रहना,

फिर नोटों का

पहनो गहना,

तीन ढाक के पात।


गुड़ - गुड़ की

गुडविल ही न्यारी,

खिले अधर की

कलिका क्यारी,

चोरी का गुड़ 

ज्यादा मीठा

कर देता सब मात।


नकली डाक्टर

अस्पताल भी,

सीख लिए गुर

भ्रमर जाल भी,

बिना पढ़े जब

नोट छप रहे,

फैली हुई बिसात।


डिग्रीधारी

बैठे टापें,

नकली से वे

असली छापें,

कौन पूछता

 डिग्री शिक्षा

रुपया मैया तात।


छापा पड़े

छिपें वे बिल में,

छपे हुए 

चौथी  मंजिल में,

देकर हो उद्धार

शॉप का

आधी रात प्रभात।


'शुभम्' सत्य 

जिसने भी बोला,

कहते उसने ही

विष घोला,

पकड़ा गया

चोर का झोला,

मिली भयंकर घात।


शुभमस्तु !


20.10.2024●11.00 आ०मा०

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