बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

दुर्गा दुर्गतिनाशिनी [ दोहा ]

 461/2024

         

[भवानी,शारदा,दुर्गा,आदिशक्ति, जननी ]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्

                  सब में एक

मातु   भवानी  दीजिए, शुभद रुचिर    वरदान।

विनत  रहूँ  माँ  चरण  में,करता निशिदिन  गान।।

माता  हो   त्रय  लोक की, भव भार्या  भी आप।

कृपा   भवानी  की  रहे, मिट जाएँ अघ   ताप।।


ज्ञानदायिनी     शारदा,   करें    रसज्ञा  -  वास।

काव्य सृजन कर मैं करूँ,जग में विमल उजास।।

कविमाता   कवि पालिका,  मातु शारदा   एक।

वाणी    में   अमृत    भरें,  जागे विमल   विवेक।।


दुर्गा   दुर्गतिनाशिनी,  दारुण  दुख   कर   दूर।

हाथ  जोड़   विनती   करूँ, शक्ति भरें  भरपूर।।

महिषासुर   की  घातिनी, माँ दुर्गा  का   तेज।

कोटि - कोटि रवि तुल्य है,जाता नहीं  सहेज।।


आदिशक्ति संसार  की, पालक  घालक एक।

जग   जननी   जगदम्बिके,  तेरे नाम  अनेक।।

आदिशक्ति- आशीष  की,महिमा अपरम्पार।

सन्ततिवत  माँ  पालती,  सबकी रचनाकार ।।


जननी का  संतान   पर, अतुलित नेह अपार।

सेवा कर उस मात की, खुलें  प्रगति के   द्वार।।

जग जननी  जगदंबिका,  हरें सकल   संताप।

भक्ति  रहे  अविचल  सदा,करें हृदय से  जाप।।


                  एक में सब

आदिशक्ति माँ शारदा, जग जननी का तेज।

दुर्गा नाशे     पाप   को,  रूप भवानी    भेज।।


शुभमस्तु !


09.10.2024●4.30आ०मा०

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