रविवार, 13 अक्तूबर 2024

घाटी भी अनमोल बड़ी [नवगीत ]

 465/2024

      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 शीश उठाए

पर्वत ऊँचे 

घाटी भी अनमोल बड़ी।


पाटल झाड़

मध्य खिलते हैं

रंग - रंग  के  फूल घने।

महिमा घटती

नहीं शूल की

आश्रय उनके बने- ठने।।

काम नहीं

आतीं तलवारें

आगे  आती सुई खड़ी।


गाय चरैया

नाग नथैया

कान्हा  ग्वाल -बाल के संग।

रास रचाए

धूम मचाए

राधा   गोपी   के  नव  रंग।।

लीलाधर की 

लीला न्यारी

खेल रहा है गेंद तड़ी।


तिनका - तिनका

बड़ा कीमती

चींटी पार   उतर   पाए।

गिरे आँख में

घायल कर दे

मन का चैन बिखर जाए।।


'शुभम्' न समझें

मोल किसी का

कमतर, आती बड़ी घड़ी।


शुभमस्तु !


10.10.2024●3.00प०मा०

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